कथक नृत्य भारत के शास्त्रीय नृत्य कलाओं में से एक है। इस नृत्य की शुरुआत उत्तर प्रदेश में हुई थी। कथक नृत्य उत्तर भारत के कई स्थानों में प्रचलित है।
कथक कला को, स्थान के अनुसार घरानों में बाँटा गया है। मौलिक रूप से तीन घराने निर्धारित किये गए हैं।
- लखनऊ घराना
- जयपुर घराना
- बनारस घराना
तीनों घरानें कई हद तक सामान्य हैं पर नृत्य करने के तरीके में बदलाव नज़र आता है। जैसे लखनऊ घराने में चेहरे के भाव, कलाई और हाथों की सुन्दर चलन, और कलाकार की विनम्रता पर अधिल ध्यान दिया जाता है। जयपुर घराने में अधिक ध्यान पैरों की तेज़ चलन और जोर्दार चक्कर को दिया जाता है। वहीँ बनारस घराने में अन्दाज़, कोमलता और पैरों की चलन पर अधिक ध्यान दिया जाता है।
कथक शब्द, एक संस्कृत शब्द ‘कथा’ से आया है। कथा का अर्थ होता है कहानी या कोई रचना। कथक नृत्य की प्रस्तुति देने वाले को कथाकार कहा जाता है। एक कथाकार, कथक नृत्य के माध्यम से किसी कथा को दर्शाता है। पुराने समय में कथाकार अलग अलग जगह जाकर अनेक कथाओं को प्रस्तुत करते थें। इससे लोगों को कहानियाँ भी मालूम चलती थीं और मनोरंजन भी होता था।
आभूषण
कथक नृत्य में आभूषण की महत्ता अधिक है। कथक में सबसे महत्वपूर्ण आभूषण घुँघरू है। घुँघरू के बिना कोई भी कथक प्रस्तुति अधूरी है। पोषाक में घाघरा, चोली और दुपट्टे का हमेशा से इस्तेमाल होता आया है, आजकल अनारकली भी पहना जाता है। गहने में छोटी हार, बड़ी हार (लम्बाई नाभी तक), कमरबन्द, कान के घुमके, मांगटीका, सफेद या लाल गजरा और चूड़ी पहना जाता है। श्रृंगार और सजावट प्रस्तुती को और निखारता है।
कथक के ताल
कथक में अनेक ताल होते हैं जैसे तीनताल, झपताल, धमार ताल, एकताल, चौताल, रूपक, कहरवा, और दादरा।
इन सारे ताल में मात्रा, बोल और विभाग का अन्तर होता है।
जितने बोल किसी ताल में होते हैं उस अंक को मात्रा कहते हैं। हर ताल के बोल को विभागों में बाँटा जाता है, ताकि बोलने की क्रिया को आसान बनाया जा सके। बोले की क्रिया को ताली और खाली से दर्षाया जाता है।
लखनऊ घराना प्रस्तुति
लखनऊ घराने में कथक नृत्य को पेश करने के लिए सबसे पहले सलामी की जाती है। सलामी को रंग मंच का टुकड़ा भी कहते हैं। मंच पर आकर सभी दर्षकों को कथाकार के द्वारा सलामी दी जाती है। दर्षकों को प्रणाम किया जाता है। उसके बाद आमद की जाती है। जोकि नृत्य की शुरुआत को दरशाता है। धीरे धीरे तिहाई, टुकड़े, और परन से नृत्य को ऊँचे लय में ले जाया जाता है।
लखनऊ घराने में नृत्य को दो भाग में बाँटा जाता है, एक भाग जिसमें पैरों की तेज़ चलन और गती को दर्शाया जाता है, और दूसरे भाग में कहानी दर्शाई जाती है।
नृत्य के इस दूसरे भाग में नर्तक के चेहरे के भाव, हाथों की मुद्राएँ और शरीर की अवस्था के द्वारा अलग अलग कहानियाँ दर्शाई जाती हैं। इन कहानियों को प्रस्तुत करने के दौरान कई बार एक नर्तक को कई सारी भूमिकाएँ निभानी होती हैं।
कथक नृत्य एक सुन्दर पारम्परिक नृत्य कला है। इस कला को सम्भालकर रखना, आगे ले जाना और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पेश करना हमारा कर्तव्य है।