वह एक वैश्या है।
हां वो एक वैश्या है,अपने शरीर को बेच कर,दो वक्त की रोजी रोटी खाती हैखुद पर गिरा कर लालछन,सबकी ख्वाइश पूरी करती है, अनुभूति नहीं होने देती दर्द की,वह परिवार…
ख़ुद से ख़ुद के लिए सोचिये
दुनिया बहोत कुछ नहीं चाहती, मगर होती तो है बेशक कवायतें मददगार नहीं, किये जाते तो है। बेनाम सी हैसियत कहना तथा कहकर सोचना ठीक नहीं क्यूंकि देर से ही…
वह एक वैश्या है।
हां वो एक वैश्या है,अपने शरीर को बेच कर,दो वक्त की रोजी रोटी खाती हैखुद पर गिरा कर लालछन,सबकी ख्वाइश पूरी करती है, वशीभूत होकर वासना में,खुद को प्रदर्शित करती…