रेप: अमानवीयता की पराकाष्ठा

रेप इसका कोई अर्थ है? क्या इस शब्द को परिभाषित किया जा सकता है? क्या आप इसे परिभाषित कर सकते हैं? क्या कोई लेखक इसे परिभाषित कर सकता है ? क्या उस दुष्कर्म पीड़ित युवती की असुरक्षा, अवसाद, खालिश, क्षोभ, एकांत को परिभाषित किया जा सकता है? अगर हम गूगल करें तो गूगल कहता है कि, “बलात्कार ऐसा अपराध है जिसमें संभोग के साथ स्त्री की सहमति पर प्रश्न होता है। संभोग की भी अपनी परिभाषा इस धारा के अंतर्गत दी गई है। किसी समय लिंग का योनि में प्रवेश संभोग माना जाता था, परंतु समय के साथ इस परिभाषा में परिवर्तन किए गए।”
एक डॉक्टर से पूछा जाए तो, “रेप एक तरह का इन ह्यूमन एक्शन है इसमें हिंसा ही हिंसा होती है यह एक ऐसा हादसा है जिसकी गवाह वह औरत होती है जिसके साथ यह घिनौना और अमानवीय काम किया जाता है”
समाज के लिए, “दुष्कर्म पीड़ित युवती किसी पर्यटन स्थल की तरह होती है, जिसे वो देख कर खुश होते हैं” यौन हिंसा से गुजरी कोई भी लड़की नहीं चाहती कि उसकी आत्मा के जख्मों पर समाज के सवालों की मक्खियां भिनकती रहे।
और उस दुष्कर्म पीड़ित युवती से पूछा जाए तो क्या कहेगी वह? मेरे ख्याल से वह अपनी पीड़ा को व्यक्त भी नहीं कर पाएगी। शायद वह कहेगी कि इस मैली आत्मा को किस डिटर्जेंट पाउडर से धोऊँ, वह देह जो उसे ही प्रश्नवाचक सी नजर आ रही है। ऐसे शरीर को जो उसे प्रतिद्वंदी नजर आता है उसे अपने साथ रखना कितना कठिन है।
एक खबर याद आती है, जहां दुष्कर्म को अंजाम देने के बाद उन युवकों ने उस लुच्चे हुए अधनग्न शरीर को रोड के किनारे फेंकने के बाद एक पर्ची छोड़ी जिसमें लिखा था। “वी इंजॉय” आप इसे क्या कहेंगे? मेरे लिए तो यह समाज का वो गंदा, भद्दा चेहरा है जिसे देखने से ही मन खराब हो जाता है यह मेरे सभ्य समाज का कलंकित चेहरा है। इन दो शब्दों के पीछे समाज की वह दुर्भावना छिपी है जिसमें हिंसा में मनोरंजन और दुष्कर्म में सुख छुपा है। किसी के दिल से खेलना किसी खिलौने से खेलना है क्या? जिसे इंजॉय किया जाए।
मैंने किताबों में पढ़ा था कि जानवर से मनुष्य बना है, पर अखबारों में देख कर मुझे यकीन हो गया। किसी की देह से खेलना उस जानवर के लिए एंजॉयमेंट है। अगर युवती विरोध करें तो हड्डियां तोड़ दो, अपने साथ हुए दुष्कर्म को बया न कर पाए इस लिए जुबान काट दो और अगर फिर भी विरोध करें तो गर्दन तोड़ दो, सरिया गुस्सा दो, सर फोड़ दो अधनग्न हालत में रोड पर छोड़ दो, जिंदा जला दो क्योंकि हम तो जानवर हैं। मनुष्य के रूप में नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की ओर से जारी किए गए ताजा आंकड़ों के अनुसार, भारत में 2019 में हर दिन बलात्कार के 88 मामले दर्ज किए गए। साल 2019 में देश में बलात्कार के कुल 32,033 मामले दर्ज किए गए। जिनमें से 11 फीसदी पीड़ित दलित समुदाय से हैं। बलात्कार की महामारी NCRB की रिपोर्ट के अनुसार, सबसे ज्यादा बलात्कार के मामले राजस्थान और उत्तर प्रदेश से दर्ज हुए। 2019 में राजस्थान में करीब 6,000 और उत्तर प्रदेश में 3,065 बलात्कार के मामले सामने आए। NCRB के आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले 10 वर्षों में महिलाओं के बलात्कार का खतरा 44 फीसदी तक बढ़ गया है। संस्था के आंकड़ों के मुताबिक, 2010 से 2019 के बीच पूरे भारत में कुल 3,13,289 बलात्कार के मामले दर्ज हुए हैं।
हमने अपने संविधान निर्माण के समय कई कानून दूसरे संविधान से लिए तो हमने रेप जैसे जघन्य अपराध के लिए क्यों कोई ऐसा कानून क्यों नहीं बनाया कि किसी स्त्री के साथ ऐसा करने से पहले उस पुरुष की रूह कांप जाए। क्या हम इतने सक्षम नहीं थे? कि ऐसा कोई कानून का निर्माण कर सकें। क्यों हमारे देश की नींद तब टूटती है, जब किसी बच्ची की रूह लूट चुकी होती है? हमारे सभ्य समाज के कुछ ठेकेदार कहते हैं कि हम इन अपराधियों को तुरंत सजा नहीं दे सकते, क्योंकि उनके कुछ मानवीय अधिकार है जिससे हम उन्हें वंचित नहीं कर सकते परंतु क्या ऐसे जघन्य अपराध को अंजाम देने के बाद उन्हें मनुष्य भी समझा जाना चाहिए क्या? जो उनके मानवीय अधिकारों की बात कर रहे हैं।
ऐसे अपराधी के लिए केवल एक दंड हो सकता है वह है मृत्युदंड। आखिर वह किसी जिंदगी से खेला है उसे इसकी कड़ी सजा मिलनी ही चाहिए। परंतु हमारे समाज का एक दूसरा पहलू भी है जो इन कानूनों का दुरुपयोग करता है और जिन स्त्रियों के साथ यह होता है जो इसे झेलती है वह न्याय नहीं पा पाती। इसी कड़ी में, झूठे सिद्ध होने पर याचिकाकर्ता को भी कड़े दंड मिले जिससे झूठे मामले चलाने वाले पर रोक लगे और इस कानून का दुरुपयोग रोका जा सके।
क्या हमारा देश कोई ऐसा कानून बना सकता है? जिससे हमारी स्त्रियां खुद को सुरक्षित महसूस कर सकें शायद तब तक नहीं जब तक हमारे देश इन अपराधियों के खिलाफ आवाज़ न उठाएं, कोई ऐसे कानून की मांग न करे जिससे उन वहशी दरिंदों की रूह न कॉप जाए। क्या यह संभव है। शायद हां अगर हम सोच ले कि ऐसे अपराधियों को बख्शा न जाए।
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I Vasundhra vatham student of journalism,delhi university.
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