क्या भारत नैतिक संकट या आर्थिक संकट का सामना कर रहा है

सर्वप्रथम नैतिक संकट की बात करें तो देश के सामने तमाम वह नैतिक चुनौतियों व्याप्त है। समाज में विभिन्न स्तर पर विभेदीकरण, छुआछूत, जातिवाद, स्त्री उत्पीड़न, धार्मिक रूढ़िवादिता, नीतिगत निर्णयन में विलम्ब प्रशासनिक नैतिकता का कामया, पर्यावरणीय नातकता का अभाव, समाज के मूल्यों में हास आदि विभिन्न पहलुओं के आलोक में हम नैतिक संकट को देख सकत है।
जहाँ एक और बाबा साहब किसी समुदाय के विकास का आकलन उस समुदाय की स्तियों द्वारा प्राप्त किये गए विकास के परिमाण के आधार पर तय करने की बात करते हैं और स्वामी विवेकानंद जहाँ महिलाओं की स्थिति में सुधार किये बगर समाज के कल्याण को असभव बताते हैं, वहीं दूसरी ओर भारत में नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो रिपोर्ट के हाल के आँकड़ों के अनुसार प्रत्येक 17 मिनट में किसी महिला के साथ हिंसा होती है, वहीं प्रत्येक दिन देश में 93 महिलाऐं रेप का शिकार होती है। दिल्ली को तो रेप कपिटल तक का दर्जा दिया जाने लगा है जहाँ इसकी दर और भयावह है, निर्भया रेप की बर्बरता से कौन नहीं वाकिफ होगा? इसके अलावा कार्यस्थल पर पोन उत्पीडन, दहेज हत्या, ऑनर किलिंग, स्त्रियों को यौन व्यापार में धकेलने आदि की घटनाएं आए दिन सुनने में आती हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो, 2014 के आँकड़ों के अनुसार महिलाओं के प्रति हिंसा के मामले में क्रमश: आध्र प्रदेश, पाक्षम बंगाल, यू.पी. राजस्थान व मध्य प्रदेश शीर्ष पर हैं। इतना ही नहीं, हरियाणा, राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश आदि में समय-समय पर महिलाओं के पहनावों व रहन-सहन, जीवन शैली के खिलाफ फरमान जारी होते रहते हैं।
इसी तरह दलितों के संदर्भ में भी हमारी नैतिकता के सामने चुनौतियों स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है। हरियाणा जैसे राज्य में ये चुनौतियों और गंभीर है. नेशनल कंफेडरेशन ऑफ दलित आदिवासी अगिनाइजेशन (NACDOR) की रिपोर्ट के अनुसार 2004 से 2013 के दौरान दलितों के खिलाफ अत्याचार की घटनाओं में ढाई गुना का इजाफा हुआ है। हाल ही में हैदराबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय के छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या पिछले 10 वर्षों में दलित छात्र हैदराबाद विश्वविद्यालय के) की आत्महत्या थी। बेलही नरवहार (1977), बयानी टोला हत्याकांड (1996) मिर्चपुर घटना (2010) आदि उन धन्य अपराध में से भारत के सम्मुख बनातक सकत के उदाहरण है। धार्मिक उन्माद साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण आदि की बढ़ती प्रवृत्ति ने देश के सामने विशद नैतिक चुनौती खड़ी की है।
बात राजनीति में नैतिकता की करें तो विभिन्न संवेदनशील मुद्दों पर ओछी राजनीति, विभिन्न संवेदनशील घटनाओं को वोट बैंक में तब्दील करने की प्रवृत्ति अस्वस्थ राजनीतिक परंपरा की ओर इशारा करती हैं। इतना ही नहीं लोकसभा, राज्यसभा एवं विभिन्न विधानसभाओं में महिलाओं, दलितों के प्रतिनिधित्व में भारी कमी व्याप्त है। जाति व धर्म आज भी भारतीय राजनीति में निर्णायक कारक हैं। वर्तमान में संसद में मात्र 12% महिला प्रतिनिधि संसद सदस्य हैं और दलितों का सामान्य सीट से जीतना आज भी आश्चर्य का विषय है। प्रशासनिक नैतिकता के सम्मुख भी कई प्रकार के संकट है। प्रशासनिक रुग्णताओं. प्रशासनिक अधिकारियों में जनोन्मुखता के अभाव आदि की वजह से योजनाओं की अंतिम स्तर पर पहुँच के सुनिश्चयन में कई सारी बाधाएँ हैं। सिविल सेवकों में अभिवत्ति संबंधी ठोस बदलावों की जरूरत है। जनता एवं सरकार के बीच की खाई भरने में इनका अहम योगदान है, पर प्रशासन में नैतिकता के संकट हमें आए दिन देखने को मिलते हैं। दरअसल योजनाओं की अंतिम व्यक्ति तक पहुँच नहीं होने में और फाइलों में बड़े-बड़े आँकड़ों की भरमार एवं धरातलीय स्तर पर योजनाओं के अमल में अंतर के पीछे भ्रष्टाचार, लालफीताशाही भाई-भतीजावाद, क्रोनी कैपिटलिज्म आदि प्रशासनिक नैतिकता के संकट जिम्मेवार हैं।
इसी तरह पर्यावरणीय नैतिकता के संदर्भ में भी भारत के सम्मुख संकट है। एक तरफ बड़े-बड़े महानगर, विशाल बांध आदि बनाए जा रहे हैं, वहीं दूसरी और विस्थापन, वनोन्मूलन, पशु-पक्षियों के हितों की अनदेखी हो रही है। महात्मा गांधी ने पर्यावरणीय नैतिकता के संदर्भ में बड़ी ही महत्वपूर्ण बात कही श्री प्रकृति हमारी ज़रूरतों को पूरा करने के लिये है, लालच को नहीं।” वास्तव में हिमाचल, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड, चेन्नई मुम्बई आदि में हम पर्यावरणीय क्षमता के विपरीत पर्यटन आदि लाभी को ध्यान में रख अधाधुंध निर्माण करते जा रहे हैं जिससे विभिन्न पर्यावरणीय आपदाओं की गहनता में वृद्धि होती जा रही है।
अगर हम भारत के सम्मुख आर्थिक संकटा की बात करें ता कृषि संबंधी संकट, उद्योग एवं व्यापार क्षेत्र में सकट, बेरोजगारी, गरीबी, मूल्य वृद्धि, वैश्विक आर्थिक संकट के प्रभाव में वृद्धि आदि की समस्याएं बनी हुई हैं।
मानसून की अनिश्चितता भारतीय कृषि के सामने शुरू से ही संकट खड़ा करती रही है साथ ही भारतीय किसानों में तकनीक व नवोन्मेष के प्रति जागरूकता के अभाव जातो का लघु आकार हरित क्रांति का खास क्षेत्र में व खास फसलों तक सीमित रहने से भारतीय कृषि को गंभीर नुकसान पहुंचा। है। नगरीय जीवन के आकर्षण एवं कृषि क्षेत्र में कृषकों की सीमांत उत्पादकता के शून्य होने के कारण ग्रामीण क्षेत्र से किसानों का पलायन जारी है।
कृषि क्षेत्र से सीधे सेवा क्षेत्र में हमारी छलांग ने एक अलग प्रकार के आर्थिक संकट की संकल्पना खड़ी की। हमने अपने विशाल अकशल श्रम की उपेक्षा कर विनिर्माण क्षेत्र पर ध्यान न देकर सीधे कृषि से सेवा क्षेत्र में छलांग लगा दी जिसस बराजगारा का भयावहता तो व्याप्त हुई ही है वैश्विक निर्यातों में हमारी हिस्सेदारी भी कम रही है। जहाँ 1970 एवं 1980 के दशक म चान जस दश ने अपने वृहद् मानव संसाधन के आलोक में विनिर्माण और लघ एवं कटीर उद्योगों पर अपना ध्यान केन्द्रित किया, वहीं हम इन क्षेत्रों की उपेक्षा करते रहे। प्रसिद्ध भारतीय अमेरिकन अर्थशास्त्री देबराज रे ने इसे द क्लासिकल स्ट्रक्चरल फीचर ऑफ अंडरडेवलपमेंट’ करार दिया।
इसी तरह भारत ने अपने आर्थिक विकास के क्रम में अपनी सांस्कृतिक विरासतों को पर्यटन उद्योग के विकास की संभाव्यता के आलोक में विकसित नहीं किया है। यथा-पर्यटन क्षेत्र की हमने भारी उपेक्षा की. ई-कॉमर्स के क्षेत्र में भारत चीन से बहुत पीले है। इस तरह के अन्य कई क्षेत्र हैं जिन्हें हमने अपने आर्थिक विकास के क्रम में उपक्षित रखा।
गरीबी और बेरोज़गारी भी भारत के सामने वहद संकट के रूप में हैं जिनके पीछे औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था की विरासत जनसंख्या का विशाल आकार, संरचनात्मक समस्याएँ आदि ज़िम्मेदार हैं। क्रय शक्ति क्षमता की दृष्टि से दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था होने के बावजूद भयावह आर्थिक विषमता ने गरीबी एवं बेरोज़गारी जैसी समस्याओं में भारी इजाफा किया है। शिक्षा उद्यम अंतराल तकनीकी शिक्षा की अपर्याप्तता, संसाधनविहीनता ने इसे और बढ़ावा दिया है। इसी तरह वैश्वीकरण की स्वाभाविक प्रक्रिया के तहत वैश्विक आर्थिक मंदी, तेल मूल्यों में वृद्धि आदि से भी भारतीय अर्थव्यवस्था को संकट का सामना करना पड़ता है।
परन्तु इन दोनों संकटों के आलोक में सरकार द्वारा इनसे निजात पाने के लिये प्रयास जारी है। आर्थिक संकटों को दूर करने के लिये सरकार ने कृषि क्षेत्र में विभिन्न योजनाएं शुरू की हैं, यथा-फसल बीमा योजना, न्यूनतम समर्थन मूल्य में समय-समय पर वृद्धि, नकद लाभ हस्तांतरण को मजबूत करना, डिजिटल क्रांति के तहत कृषि क्षेत्र को जोड़ना, किसानों की ऋण माफी के संदर्भ में प्रयास करना, मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना, फसल बीमा पोर्टल की शुरुआत, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना आदि कृषि के सम्मुख संकटों को दूर करने में सहायक प्रतीत हो रहे हैं।.
इसी तरह विनिर्माण क्षेत्र के विकास के लिये ‘मेक इन इंडिया’ जैसी पहल, कोशल विकास के लिये अलग मंत्रालय गठित कर राष्ट्रीय कौशल विकास एवं उद्यमिता नीति का निर्माण करना, कोशल भारत, स्टार्ट अप इंडिया आदि के माध्यम से उद्यमिता को प्रोत्साहित कर रोज़गार संवर्द्धन के लिये ठोस प्रयास किये जा रहे हैं। पर्यटन क्षेत्र के विकास हेतु ई-पर्यटक वीज़ा योजना का विस्तार, हृदय योजना प्रसाद कार्यक्रम आदि शुरू किये गए हैं। गरीबी एवं बेरोज़गारी से लड़ने में उपर्युक्त कार्यक्रम तो काम आएंगे ही, साथ ही मनरेगा जेसी योजनाऐं, सेल्फ हेल्प ग्रुप का विकास आदि भी इस हेतु कारगर सिद्ध हो रहे हैं ।
बात नैतिक संकट को दूर करने की करें तो महिला सशक्तीकरण हेतु ठोस प्रयास किये जा रहे हैं। ‘बेटी बचाओ बेटी पढाओ’ जैसी योजनाएँ, सुकन्या समृद्धि योजना, विभिन्न योजनाओं में महिला प्रमुखों को वरीयता देना स्वयं सहायता समूहों एवं लघु वित्त विकास के माध्यम से महिलाओं को न सिर्फ आर्थिक रूप से सशक्त करने का प्रयास किया जा रहा है बल्कि महिलाओं के विरुद्ध हिंसा को रोकने के लिये कड़े दंडात्मक प्रावधान किये जा रहे हैं। हाल ही में जुवेनाइल एक्ट में संशोधन कर जघन्यतम अपराधों में न्यूनतम 16 वर्ष की उम्र को वयस्क उम्र घोषित करना, पंचायत स्तर पर महिला आरक्षण आदि ने महिलाओं के सशक्तीकरण को और मज़बूत किया है। पुलिस सुरक्षा बलों, अंतरिक्ष क्षेत्र आदि, जो महिलाओं के लिये अब तक अनुकल क्षेत्र नहीं समझे जाते थे, में महिलाओं की बढ़ती भूमिका स्त्री सशक्तीकरण के सम्मुख आए संकटों को दूर करने में सहयोगी साबित हो रही है।
इसी तरह एस. सी., एस. टी. एवं ओबीसी आरक्षण. एस. सी. एस.टी के खिलाफ अत्याचार रोकथाम अधिनियम 1989, विभिन्न सरकारी योजनाओं में उपेक्षित तबके को केंद्र में रखना, विभिन्न छात्रवृत्ति संबंधी प्रावधान आदि ने वंचित वर्ग की आवाज़ को बुलंद करने का प्रयास किया है। प्रशासनिक नैतिकता संबंधी संकट के आलोक में सिविल सेवा के पाठयक्रम में बदलाव एवं एथिक्स की महत्ता में वृद्धि, प्रशासनिक अधिकारियों के प्रशिक्षण के दौरान नैतिकता संबंधी कक्षाओं आदि के साथ-साथ ई-गवर्नेस, डिजिटल इंडिया एवं अन्य कई माध्यमों से प्रशासन को और जनोन्मुख बनाने का प्रयास किया जा रहा है।
पर्यावरणीय नैतिकता को ध्यान में रखकर नवीकरणीय ऊर्जा पर बल देना 2022 तक 175 गीगावाट के नवीकरणीय ऊजा कलक्ष्य एवं सोर गठबंधन के साथ-साथ राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण आदि के माध्यम से पर्यावरणीय नैतिकता के संकट का किया जा रहा है। अंत में, भारत के सम्मख संकट नैतिक एवं आर्थिक दोनों हैं नीतिगत जडता भी कई बार आर्थिक जड़ता को बढ़ावा किया जा रहा है एवं आर्थिक जड़ता भी नैतिक संकट की ओर धकेलती है। विभिन्न सरकारी प्रयासों, गैर सरकारी संगठना स्वयंस समूहों के माध्यम से हम भारत में व्याप्त इन दोनों संकटों को दूर करने का ठोस प्रयास कर रहे हैं।